अंजुम अंसारी के शेर
हर एक मोड़ से पूछा है मंज़िलों का पता
सफ़र तमाम हुआ रहबर नहीं आए
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चमक उठे हैं थपेड़ों की चोट से क़तरे
सदफ़ की गोद में 'अंजुम' गुहर नहीं आए
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कितने ही दाएरों में बटा मरकज़-ए-ख़याल
इक बुत के हम ने सैकड़ों पैकर बना दिए
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