अंजुम बाराबंकवी
ग़ज़ल 14
अशआर 17
ये बादशाह नहीं है फ़क़ीर है सूरज
हमेशा रात की झोली से दिन निकालता है
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मुझे सोने की क़ीमत मत बताओ
मैं मिट्टी हूँ मिरी अज़्मत बहुत है
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जो दोस्तों की मोहब्बत से जी नहीं भरता
तो आस्तीन में दो-चार साँप पाल के रख
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जिस बात का मतलब ख़ुश्बू है हर गाँव के कच्चे रस्ते पर
उस बात का मतलब बदलेगा जब पक्की सड़क आ जाएगी
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मशहूर भी हैं बदनाम भी हैं ख़ुशियों के नए पैग़ाम भी हैं
कुछ ग़म के बड़े इनआ'म भी हैं पढ़िए तो कहानी काम की है
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