अंजुम बाराबंकवी
ग़ज़ल 14
अशआर 17
ऐ आसमान हर्फ़ को फिर ए'तिबार दे
वर्ना हक़ीक़तों को कहानी लिखेंगे लोग
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घर-बार छोड़ कर वो फ़क़ीरों से जा मिले
चाहत ने बादशाहों को महकूम कर दिया
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ज़रा महफ़ूज़ रस्तों से गुज़रना
तुम्हारी शहर में शोहरत बहुत है
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जिस बात का मतलब ख़ुश्बू है हर गाँव के कच्चे रस्ते पर
उस बात का मतलब बदलेगा जब पक्की सड़क आ जाएगी
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ये बादशाह नहीं है फ़क़ीर है सूरज
हमेशा रात की झोली से दिन निकालता है
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