अंजुम फ़ौक़ी बदायूनी
ग़ज़ल 35
अशआर 5
उस ने मजबूर-ए-वफ़ा जान के मुँह फेर लिया
मुझ से ये भूल हुई पूछ लिया कैसे हो
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सच कोई फ़न तो नहीं है जो सिखाया जाए
झूट से काम ले सच बोलना आ जाएगा
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तुम अपनी आँखों की लाली फूलों में तक़्सीम करो
मेरे दिल का हाल न पूछो रहने दो जिस हाल में है
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एक रहें या दो हो जाएँ रुस्वाई हर हाल में है
जीवन रूप की सारी शोभा जीवन के जंजाल में है
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ज़ेहन-ओ-दिल तफ़रीक़ के क़ाइल नहीं
क्या करूँ अपना पराया जान कर
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