अंजुम ख़लीक़
ग़ज़ल 23
नज़्म 5
अशआर 39
कैसा फ़िराक़ कैसी जुदाई कहाँ का हिज्र
वो जाएगा अगर तो ख़यालों में आएगा
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इंसान की निय्यत का भरोसा नहीं कोई
मिलते हो तो इस बात को इम्कान में रखना
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कहो क्या मेहरबाँ ना-मेहरबाँ तक़दीर होती है
कहा माँ की दुआओं में बड़ी तासीर होती है
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ज़मीं की गोद में इतना सुकून था 'अंजुम'
कि जो गया वो सफ़र की थकान भूल गया
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सो मेरी प्यास का दोनों तरफ़ इलाज नहीं
उधर है एक समुंदर इधर है एक सराब
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