अनवार फ़िरोज़ के शेर
जो वालिद का बुढ़ापे में सहारा बन नहीं सकता
जो सच पूछो तो हो लख़्त-ए-जिगर अच्छा नहीं लगता
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ये दिल का कर्ब लबों तक कभी न आएगा
मिरे लिए ये ख़मोशी का इर्तिक़ा ही सही
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