अनवर साबरी
ग़ज़ल 26
नज़्म 2
अशआर 31
ज़ुल्मतों में रौशनी की जुस्तुजू करते रहो
ज़िंदगी भर ज़िंदगी की जुस्तुजू करते रहो
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मैं जो रोया उन की आँखों में भी आँसू आ गए
हुस्न की फ़ितरत में शामिल है मोहब्बत का मिज़ाज
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तमाम उम्र क़फ़स में गुज़ार दी हम ने
ख़बर नहीं कि नशेमन की ज़िंदगी क्या है
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जीने वाले तिरे बग़ैर ऐ दोस्त
मर न जाते तो और क्या करते
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उफ़ वो मासूम ओ हया-रेज़ निगाहें जिन पर
क़त्ल के बाद भी इल्ज़ाम नहीं आता है
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