अनवारूल हसन अनवार
ग़ज़ल 5
अशआर 9
अब तिरे हिज्र में यूँ उम्र बसर होती है
शाम होती है तो रो रो के सहर होती है
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बे-ख़याली में भी फिर उन का ख़याल आता है
वही तस्वीर मिरे पेश-ए-नज़र होती है
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भूलने वाले तुझे याद किया है बरसों
दिल-ए-वीराँ को यूँ आबाद किया है बरसों
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सुकून-ए-दिल न मयस्सर हुआ ज़माने में
न याद रखने में तुम को न भूल जाने में
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साथ जो दे न सका राह-ए-वफ़ा में अपना
बे-इरादा भी उसे याद किया है बरसों
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