अक़ील दानिश
ग़ज़ल 2
अशआर 3
अब भी कुछ लोग मोहब्बत पे यक़ीं रखते हैं
हो जो मुमकिन तो उन्हें देस निकाला दे दो
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मैं भी सच कहता हूँ इस जुर्म में दुनिया वालो
मेरे हाथों में भी इक ज़हर का पियाला दे दो
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फ़ितरत का ये सितम भी है 'दानिश' अजीब चीज़
सर कैसे कैसे कैसी कुलाहों में रख दिए
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