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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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अरशद नईम

अरशद नईम

ग़ज़ल 1

 

नज़्म 1

 

अशआर 2

शाम ढलते ही दिल के आँगन से

दर्द का कारवाँ गुज़रता है

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मैं वुसअतों से बिछड़ के तन्हा जी सकूँगा

मुझे रोको मुझे समुंदर बुला रहा है

 

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