अरशद सिद्दीक़ी
ग़ज़ल 15
अशआर 3
हो इंतिज़ार किसी का मगर मिरी नज़रें
न जाने क्यूँ तिरी आमद की राह तकती हैं
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हमें मिट के भी ये हसरत कि भटकते उस गली में
वो हैं कैसे लोग या रब जो क़याम चाहते हैं
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फ़ज़ा है तीरा ओ तारीक और उस का ख़याल
न जाने कौन सी दुनिया में जा के सोया है
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