आरज़ू सहारनपुरी
ग़ज़ल 16
अशआर 4
कभी कभी तो इक ऐसा मक़ाम आया है
मैं हुस्न बन के ख़ुद अपनी नज़र से गुज़रा हूँ
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere