असद भोपाली
ग़ज़ल 14
अशआर 15
अजब अंदाज़ के शाम-ओ-सहर हैं
कोई तस्वीर हो जैसे अधूरी
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इतना तो बता जाओ ख़फ़ा होने से पहले
वो क्या करें जो तुम से ख़फ़ा हो नहीं सकते
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ऐसे इक़रार में इंकार के सौ पहलू हैं
वो तो कहिए कि लबों पे न तबस्सुम आए
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न आया ग़म भी मोहब्बत में साज़गार मुझे
वो ख़ुद तड़प गए देखा जो बे-क़रार मुझे
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मैं अब तेरे सिवा किस को पुकारूँ
मुक़द्दर सो गया ग़म जागता है
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