असग़र आबिद के शेर
जिस्म पाबंद-ए-गुल सही 'आबिद'
दिल मगर वहशतों की बस्ती है
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टैग : दिल
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हम तो उस पस्ती-ए-एहसास पे जीते हैं जहाँ
ये भी मालूम नहीं जीत है क्या मात है क्या
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उजलत के अलाव में किए फ़ैसले 'आबिद'
अब सोच की बर्फ़ानी खड़ाऊँ पे खड़े हैं
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