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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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Asghar Abid's Photo'

असग़र आबिद

1952

असग़र आबिद के शेर

जिस्म पाबंद-ए-गुल सही 'आबिद'

दिल मगर वहशतों की बस्ती है

हम तो उस पस्ती-ए-एहसास पे जीते हैं जहाँ

ये भी मालूम नहीं जीत है क्या मात है क्या

उजलत के अलाव में किए फ़ैसले 'आबिद'

अब सोच की बर्फ़ानी खड़ाऊँ पे खड़े हैं

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