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अशफ़ाक़ नासिर

अशफ़ाक़ नासिर

ग़ज़ल 10

अशआर 11

शाम ढलने से फ़क़त शाम नहीं ढलती है

उम्र ढल जाती है जल्दी पलट आना मिरे दोस्त

अपनी क़िस्मत में सभी कुछ था मगर फूल थे

तुम अगर फूल होते तो हमारे होते

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शाम होती है तो लगता है कोई रूठ गया

और शब उस को मनाने में गुज़र जाती है

हिज्र इंसाँ के ख़द-ओ-ख़ाल बदल देता है

कभी फ़ुर्सत में मुझे देखने आना मिरे दोस्त

वो फूल हो सितारा हो शबनम हो झील हो

तेरी किताब-ए-हुस्न के सब इक़्तिबास थे

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aah ko chahiye ek umr asar hote tak SHAMSUR RAHMAN FARUQI

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