aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1848 - 1918
ज़िक्र करता है इस तरह मेरा
मुझ को गोया मिटाए जाता है
एक रुत्बा है तिरे दर पे गदा-ओ-शह का
आसमाँ कासे लिए फिरता है मेहर-ओ-मह का
मुझे तुम देख कर समझो कि चाहत ऐसी होती है
मोहब्बत वो बुरी शय है कि हालत ऐसी होती है
तिरे कूचे में कोई हूर आ जाती तो मैं कहता
कि वो जन्नत तो क्या जन्नत है जन्नत ऐसी होती है
अपना सानी वो आप ही निकले
आइना भी दिखा के देख लिया
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