आसिफ़ फर्ऱुखी की कहानियाँ
समुंदर की चोरी
अभी वक़्त था। पानी और आसमान के बीच में रौशनी की वो पहली, कच्ची-पक्की, थरथराती हुई किरन फूटने भी न पाई थी कि शह्र-वालों ने देखा समुंद्र चोरी हो चुका है। दिन निकला था न समुंद्र के किनारे शह्र ने जागना शुरू किया था। रात का अंधेरा पूरी तरह सिमटा भी नहीं था
परिंदे की फ़रियाद
परिंदे की फ़र्याद आत्म ज्ञान की कहानी है। इस कहानी में एक परिंदा बेचने वाला शख़्स सिग्नल लाईट के इंतज़ार में खड़ी गाड़ीयों में बैठे लोगों से फ़र्याद करता है कि वो उन्हें ख़रीद कर उड़ा दें ये दुआ देंगे। परिंदा बेचने वाला एक गाड़ी में बैठे शख़्स को ज़बरदस्ती एक पिंजरा थमा देता है। वो जल्दी से भुगतान कर के आगे बढ़ जाता है। फिर लगभग रोज़ाना उस व्यक्ति के गले पड़ एक दो पिंजरे उसके सर मढ़ देता है। घर पहुंचने के बाद उन परिंदों को उड़ाते हुए उसे बचपन में पढ़ी हुई नज़्म परिंदे की फ़र्याद याद आ जाती है और वो महसूस करता है कि उसकी ज़िंदगी भी वक़्त, सामाजिक बंधन और ज़िम्मेदारियों के पिंजरे में क़ैद है।
समंदर
"कछुवे की पैदाइश और उसके सम्पूर्ण जीवन को प्रतिबिंबित करती यह कहानी मानव जीवन की विकास यात्रा की उपमा है। सूत्रधार सम्पूर्ण चंद्रमा की रात में साहिल पर कछुओं के आने और बच्चा जनने की पूरी प्रक्रिया देखने के उद्देश्य से जाता है। समुंद्र की पुरशोर मौजों को देखकर वो जीवन के रहस्यों पर ग़ौर करने में इतना लीन हो जाता है कि समुंद्र से कछुवे के निकलने का लम्हा गुज़र जाता है। अपने ख़यालों की दुनिया से वो उस समय जागता है जब कछुवे रेत हटा कर अपना भट्ट बनाना शुरू कर देते हैं। भट्ट बना कर उसमें अंडे देने और फिर समुंद्र में उसके वापस जाने की पूरी प्रक्रिया देखने के बाद वो घर वापस आ जाता है। कछुवे के एक छोटे बच्चे को उठा कर जिस तरह सूत्रधार चूमता है, इससे उसके मामता के जज़्बे का बख़ूबी चित्रण होता है।"
वैलेनटाइन
ये अफ़साना धार्मिक अतिवाद पर आधारित है। एक उग्रवादी अध्यापिका मासूम सरमद को स्कूल में बताती है कि वेलेनटाइन मनाना काफ़िरों का काम है और इसका गुनाह होगा। सरमद अपनी कज़न आमना को वेलेनटाइन का मैसेज कर चुका है, इसी वजह से वो अपराध बोध से रोता है। वालिद समझाते हैं कि तुम मासूम हो, बच्चों को गुनाह नहीं होता, तो वो किसी तरह अपने दुख से बाहर निकलता है और फिर कुछ देर बाद अपने माँ-बाप से कहता है कि आमना को मुहर्रम के हॉली-डे पर मेनी हैप्पी रिटर्नज़ ऑफ़ सेलिब्रेशन का मैसेज भेजूँगा।
समुन्द्र की बीमारी
पर्यावरण प्रदुषण पर आधारित कहानी है। समुंद्र की सैर करने वालों की बदौलत तटीय क्षेत्र में आबाद लोगों का गुज़र बसर मामूली खाने-पीने की चीज़ें बेच कर हो जाता है। लेकिन प्रदुषण ख़त्म होने तक समुंद्री सैर पर पाबंदी लगने के बाद सैकड़ों लोग बे-रोज़गार हो गए। संवेदनहीन समाज, न्यायलय, प्रशासन और कारोबारी लोगों को इस बात का एहसास नहीं कि पर्यावरण प्रदुषण फैलाने पर ही पाबंदी लगाई जाये।
स्पाइडर मैन
"विभिन्न दृश्यों को एकत्र करके अफ़साना बनाया गया है। शहर की दौड़ती भागती ज़िंदगी, चीख़ती चिंघाड़ती गाड़ियाँ, बलात्कार, क़त्ल, व लूट, बम धमाके सब एक स्पाइडर मैन के इशारे पर हो रहे हैं। उसने पूरे शहर पर क़ब्ज़ा कर लिया है और सितम तो ये है कि शहर वाले उसकी हुकूमत से ख़ुश हैं। लोग नारे लगा रहे हैं स्पाइडर मैन, स्पाइडर मैन, वी वांट यू। तुझे मक्खियों के शहर का सलाम हो, ऐ साहिब-ए-मकड़ी, तू ही हमारा इमाम हो।"
सितार-ए-ग़ैब
अफ़साना लूडो की तरह के एक स्व निर्मित खेल पर आधारित है जिसमें चार मुहरे हैं। घुड़सवार, बादबानी कश्ती, मीनार और नीम-दराज़ बब्बर शेर। खिलाड़ियों की तादाद भी चार है जो बड़ी तन्मयता और सोच समझ कर चालें चलते हैं ताकि ज़्यादा से ज़्यादा इलाक़ों पर क़ब्ज़ा कर सकें। इलाक़ों के नाम स्थानीय हैं इसलिए खिलाड़ियों पर इसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी ज़ाहिर होता है। संयोगवश सूत्रधार उन इलाक़ों पर क़ब्ज़ा करने में नाकाम रहता है जो उसके पसंदीदा होते हैं। उसे लगता है कि सब मिलकर उस के ख़िलाफ़ साज़िश कर रहे हैं, अपनी महरूमी और बद-क़िस्मती से वो बद-दिल हो जाता है और खेल छोड़ देता है।
ऊपर वालियाँ
यह एक बीमार व्यक्ति की रूदाद है जिसका जिस्म बुख़ार की वजह से तप रहा है। घर वाले उसके आराम के ख़्याल से कानाफूसी में बातें करते हैं लेकिन उन कानाफुसियों में कुछ आवाज़ें ऐसी हैं जिन्हें सुनकर वो दुखी हो जाता है क्योंकि उनमें बीमार की फ़िक्र से ज़्यादा उनकी अपनी परेशानियाँ और झुँझलाहटें हैं। दवा से फ़ायदा न होने पर झाड़ फूंक शुरू होती है, आग में मिर्चें डाली जाती हैं, गोश्त के टुकड़े से नज़र उतार कर और सर पर रोटियों का थाल बाँध कर चीलों को खिलाया जाता है। ये सारी प्रक्रियाएं बीमार व्यक्ति को ये सोचने पर मजबूर कर देती हैं कि आख़िर ये चीलें कब तक झपट्टा मारती रहेंगी, मंडलाना कब शुरू करेंगी।
आज का मरना
इस कहानी में सामाजिक जड़ता का मातम किया गया है। बिल्लियों को खाना खिलाने वाली एक बूढ़ी भिखारन वर्षों से एक विशेष स्थान पर बैठती थी और इसी वजह से वो दृश्य का एक महसूस हिस्सा बन गई थी। लेकिन जब उसका देहांत हो जाता है तो किसी के कान पर जूँ तक नहीं रेंगती। कहानी का सूत्र-धार अमरीका जैसे मशीनी शहर को सिर्फ़ इसलिए छोड़कर आता है क्योंकि नाइन इलेवन के बाद एक विशेष पहचान के साथ वहाँ ज़िंदगी बसर करना मुश्किल हो गया था और उसे अपने शहर के मूल्य और परम्पराएं प्रिय थीं। लेकिन जब वो अपने शहर आया तो उसने देखा कि उसका समाज इतना सुन्न हो चुका है कि किसी की मौत भी उसके दिनचर्या में कोई फ़र्क़ नहीं ला पाती।
कोह्र
इस अफ़साने में कोहरे को साकार करने कोशिश की गई है। मानवीय स्वार्थ से पैदा होने वाले प्रदूषण और अशुद्ध वातावरण ने पूरे शहर को धुँधला कर दिया है। लोग सोचते हैं कि ये धुंध क़ुदरती और वक़्ती है, छट ही जाएगी। लेकिन ख़त्म होने के बजाए बढ़ने के ही आसार नज़र आते हैं। कोहरा इस अफ़साने में अत्याचार के प्रतीक के रूप में उभर कर सामने आता है।
बहीरा-ए-मुर्दार
औलाद से वंचित एक जोड़े की कहानी है। भाग्य की विडम्बना ये है कि पति-पत्नी दोनों में कोई कमी नहीं, इसके बावजूद वो औलाद के सुख से वंचित हैं। हर बार गर्भ ठहरने के कुछ ही दिन बाद बच्चा ज़ाए‘अ हो जाता है। अख़बार में मुलाज़िम सूत्रधार अपने जीवन के अभावों का उल्लेख भी इसी संदर्भ में करता है। उसको संडे मैगज़ीन के लिए एक कालम लिखने के लिए दिया जाता है। एक दिन वो कालम लिखने के लिए बहुत देर तक परेशान रहता है और फिर लिखता है... इस्राईल के क़रीब एक झील है जिसका नाम बहीरा-ए-मुर्दार है। उसके खारे पानी की यह विशेषता है कि वहाँ कोई ज़िंदा चीज़ पनप नहीं सकती। न आबी पौधे न मुरग़ाबियाँ, न मछलियाँ। इसीलिए उसे बहीरा-ए-मुर्दार कहते हैं।
शहर जो खोए गए
"ज़मीन के नीचे से बरामद एक शहर की चीज़ें, मकानात, संस्कृति व सभ्यता के अवशेष की मदद से शोध किया गया है कि यह शहर किस काल और किस जाति से सम्बंध रखता है। मीनार पर लिखी इबारत को डी कोड करने के बाद अंदाज़ा हुआ कि ये एक पीड़ित जाति थी जिसे नष्ट कर दिया गया था। जिनकी औरतों और बच्चों पर हिंसा किया गया था यानी ये कि अत्याचार व हिंसा की तारीख़ बहुत पुरानी है।"
ज़मीन की निशानियाँ
"यह कहानी सभ्यता के पतन का नौहा है। ये उस वक़्त का ज़िक्र है जब शिष्टाचार व मूल्यों की निशानियाँ शेष थीं। लोग एक दूसरे की वरीयताओं और स्वभाव का ख़्याल रखते थे। कहानी में कथित परिवार के एक मुर्दा व्यक्ति की पसंद व नापसंद का ख़्याल घर वाले इस तरह रखते हैं जैसे वो कहीं आस-पास है और जल्द ही लौट आएगा। कहानी में बिल्ली, सेंभल, दरख़्त, मकानात और इसी तरह की कई निशानियों का उल्लेख किया गया है।"
गाये खाये गुड़
यह अफ़साना सरकारी अत्याचार पर आधारित है। अभिव्यक्ति की आज़ादी पर पाबंदी लगाने की कहानी है जिसे अफ़साना निगार ने बचपन की एक घटना से जोड़ कर अस्पष्ट अंदाज़ में बयान किया है। जिस तरह बचपन में गाय खाए गुड़ कहलवाते हुए मज़बूत हाथ होंठ दबा देते थे और वह जुमला गाय खाए गप हो जाता था, उसे कभी अस्ल जुमला कहने की आज़ादी नहीं दी गई। उसी तरह व्यवहारिक जीवन में भी वो जब सही या हक़ बात कहने की कोशिश करता है तो उसके ऊपर आच्छादित मज़बूत शक्तियाँ उसकी ज़बान बंद कर देती हैं।
नाक़त-उल-अल्लाह
ये अफ़साना इंसान के अत्याचार व हिंसा और इसके विनाशकारी प्रवृति की रूदाद है जो अह्दनामा-ए-अतीक़ के ऊँटनी वाली घटना पर निर्माण किया गया है। ऊँटनी को चमत्कार के रूप में भेजा जाता है और बताया जाता है कि ये तुम्हारे लिए बरकत का सबब है। उन्हें हुक्म दिया जाता है कि वो सब्र व सहिष्णुता से काम लेते हुए बारी-बारी अपनी ऊँटनियों को पानी पिलाऐं और इस चमत्कारिक ऊँटनी के लिए एक दिन छोड़ दें। लेकिन लोगों ने असहिष्णुता का प्रदर्शन किया और ऊँटनी के कोंचें काट दीं और फिर उसका गोश्त भून कर जश्न का माहौल बरपा किया गया।