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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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आसिम नदीम आसी

ग़ज़ल 1

 

अशआर 19

हुसैन आज भी क़ाएम है अपनी सूरत पर

यज़ीद चेहरे बदलता है हर ज़माने में

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दोस्त-दारी के सलीक़े से बहुत वाक़िफ़ हूँ

अब मुझे हाथ मिलाने का हुनर आता है

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तुझे छू कर मुझे कैसा लगेगा

हवा के हाथ बन कर सोचता हूँ

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तुम उन के हात पे सिक्के नहीं दिए रक्खो

ये अंधे लोग हैं और रौशनी के भूके हैं

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इक यक़ीं-परवर गुमाँ और इक हयात-आमेज़ ख़्वाब

जैसे कोई आएगा और उलझनें ले जाएगा

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