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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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असलम हनीफ़

1956 - 2024 | गुन्नौर, भारत

हिन्दुस्तानी शायर, प्रचलित काव्य विधाओं में नये रचनात्मक प्रयोग किये

हिन्दुस्तानी शायर, प्रचलित काव्य विधाओं में नये रचनात्मक प्रयोग किये

असलम हनीफ़

ग़ज़ल 10

नज़्म 2

 

दोहा 8

फैला हुआ है हर-तरफ़ एक अजब हैजान

शहर में कर मिट गई मेरी भी पहचान

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जब भी आऊँ चोरी-छुपे उस के घर की ओर

दुनिया देखे बाग सी मन में नाचे मोर

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तू मेरे एहसास का जब भी बना आधार

सूरज मेरी ओट से निकला सौ सौ बार

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मैं तेरी जानिब चला बादल मेरी ओर

सूरज सर पर गया हुई फिर भी भोर

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हर-पल इक आज़ार है हर-पग इक आज़ार

सच्चाई की राह पर चलना है दुश्वार

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