अता आबिदी
अशआर 8
ज़रूरत ढल गई रिश्ते में वर्ना
यहाँ कोई किसी का अपना कब है
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सब्र की हद भी तो कुछ होती है
कितना पलकों पे सँभालूँ पानी
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आज भी 'प्रेम' के और 'कृष्ण' के अफ़्साने हैं
आज भी वक़्त की जम्हूरी ज़बाँ है उर्दू
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अदब ही ज़िंदगी में जब न आया
अदब में इतनी मेहनत किस लिए है
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किसी के जिस्म-ओ-जाँ छलनी किसी के बाल-ओ-पर टूटे
जली शाख़ों पे यूँ लटके कबूतर देख आया हूँ
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ग़ज़ल 11
नज़्म 11
पहेली 10
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