अताउर्रहमान क़ाज़ी के शेर
कशिश कुछ ऐसी थी मिट्टी की बास में हम लोग
क़ज़ा का दाम बिछा था मगर चले आए
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बिखर बिखर गया इक मौज-ए-राएगाँ की तरह
किसी की जीत का नश्शा किसी की मात के साथ
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