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अतीब क़ादरी

1995 | पीलीभीत, भारत

अतीब क़ादरी

ग़ज़ल 1

 

नज़्म 1

 

अशआर 6

तुम्हारे हिज्र में जब भी कैलेंडर पर निगाह डाली

सितंबर के महीने को सितमगर ही पढ़ा मैं ने

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पूछने वालों ने पूछा हाथ कैसे जल गया

कैसे बतलाएँ किसी के दिल पे रक्खा था कभी

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कोई कश्ती कहीं मग़रूर हो जाए पानी में

सुकूत-ए-बहर को क़स्दन तलातुम होना पड़ता है

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जिन की उँगली थाम के चलना सीखा था

हाए अब उन को बूढ़ा होते देखना है

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हमारे सर पे पेच-ओ-ख़म का ये साफ़ा विरासत है

कि तुम पगड़ी समझते हो जिसे हम ताज कहते हैं

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