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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

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अतीक़ अंज़र

1963 | क़तर

अतीक़ अंज़र

ग़ज़ल 15

नज़्म 9

अशआर 15

शाम के धुँदलकों में डूबता है यूँ सूरज

जैसे आरज़ू कोई मेरे दिल में मरती है

तुझ से मिल कर भी उदासी नहीं जाती दिल की

तू नहीं और कोई मेरी कमी हो जैसे

गाँव के परिंदे तुम को क्या पता बिदेसों में

रात हम अकेलों की किस तरह गुज़रती है

ग़म की बंद मुट्ठी में रेत सा मिरा जीवन

जब ज़रा कसी मुट्ठी ज़िंदगी बिखरती है

तिरी ज़ुल्फ़ों के साए में अगर जी लूँ मैं पल-दो-पल

हो फिर ग़म जो मेरे नाम सहरा लिख दिया जाए

पुस्तकें 4

 

वीडियो 3

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अतीक़ अंज़र

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शायर अपना कलाम पढ़ते हुए
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