अतीक़ अंज़र
ग़ज़ल 15
नज़्म 9
अशआर 15
बिछड़ते वक़्त अना दरमियान थी वर्ना
मनाना दोनों ने इक दूसरे को चाहा था
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ग़म की बंद मुट्ठी में रेत सा मिरा जीवन
जब ज़रा कसी मुट्ठी ज़िंदगी बिखरती है
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वो ग़ज़ल की किताब है प्यारे
उस को पढ़ना सवाब है प्यारे
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शाम के धुँदलकों में डूबता है यूँ सूरज
जैसे आरज़ू कोई मेरे दिल में मरती है
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गाँव के परिंदे तुम को क्या पता बिदेसों में
रात हम अकेलों की किस तरह गुज़रती है
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वीडियो 3
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