अय्यूब साबिर के शेर
शफ़क़ हूँ सूरज हूँ रौशनी हूँ
सलीब-ए-ग़म पर उभर रहा हूँ
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कहा ये मैं ने भला कब कि मत सज़ा दीजे
मगर क़ुसूर तो मुझ को मिरा बता दीजे
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