अज़हर सईद के शेर
मगर इस ख़ामुशी से अहल-ए-दिल का कुछ भरम तो है
जो कुछ कहिए तो सारी उम्र की महरूमियाँ कहिए
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सुबूत बर्क़ की ग़ारत-गरी का किस से मिले
कि आशियाँ था जहाँ अब वहाँ धुआँ भी नहीं
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