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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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अज़ीज़ फ़ैसल

नज़्म 1

 

अशआर 20

वो साड़ी ज्यूलरी के तहाइफ़ पे थी ब-ज़िद

हम सौ रूपे की शाल से आगे नहीं गए

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है कामयाबी-ए-मर्दां में हाथ औरत का

मगर तू एक ही औरत पे इंहिसार कर

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मैं एक बोरी में लाया हूँ भर के मूँग-फली

किसी के साथ दिसम्बर की रात काटनी है

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वो अफ़तारी से पहले चखते चखते

खुजूरें और पकौड़े खा चुका है

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वो तीस साल से है फ़क़त बीस साल की

चेहरे पे चुकी है बुज़ुर्गी जमाल की

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हास्य शायरी 3

 

क़ितआ 3

 

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