join rekhta family!
ग़ज़ल 41
नज़्म 4
शेर 58
अपने मरकज़ की तरफ़ माइल-ए-परवाज़ था हुस्न
भूलता ही नहीं आलम तिरी अंगड़ाई का
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
पैदा वो बात कर कि तुझे रोएँ दूसरे
रोना ख़ुद अपने हाल पे ये ज़ार ज़ार क्या
create that aspect in yourself that others cry for thee