aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1932 - 2008 | कराची, पाकिस्तान
कितने लगे हैं ज़ख़्म जिगर पर किसे ख़बर
ढाई है किस ने कितनी क़यामत न पूछिए
अश्कों ने राज़ दिल का किया जब कभी अयाँ
कितनी हुई है मुझ को नदामत न पूछिए
रंज-ओ-अलम की कोई हक़ीक़त न पूछिए
कितनी है मेरे दर्द की अज़्मत न पूछिए
अब तो है सिर्फ़ आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहार याद
दिल एक फूल था जो सर-ए-शाख़ जल गया
जब दिल का दर्द मंज़िल-ए-शब से निकल गया
महसूस ये हुआ कोई तूफ़ान टल गया
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