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अज़रा परवीन

लखनऊ, भारत

प्रतिरोध और आधुनिक सामाजिक समस्याओं को अपनी शायरी में शामिल करनेवाली शायरा।

प्रतिरोध और आधुनिक सामाजिक समस्याओं को अपनी शायरी में शामिल करनेवाली शायरा।

अज़रा परवीन

ग़ज़ल 8

नज़्म 5

 

अशआर 5

ज़मीं के और तक़ाज़े फ़लक कुछ और कहे

क़लम भी चुप है कि अब मोड़ ले कहानी क्या

उस ने मेरे नाम सूरज चाँद तारे लिख दिया

मेरा दिल मिट्टी पे रख अपने लब रोता रहा

चार सम्तें आईना सी हर तरफ़

तुम को खो देने का मंज़र और मैं

सिमट गई तो शबनम फूल सितारा थी

बिफर के मेरी लहर लहर अँगारा थी

रंग अपने जो थे भर भी कहाँ पाए कभी हम

हम ने तो सदा रद्द-ए-अमल में ही बसर की

पुस्तकें 2

 

ऑडियो 4

अब अपनी चीख़ भी क्या अपनी बे ज़बानी क्या

आसमाँ साहिल समुंदर और मैं

मैं और ही कोई हादिसा हूँ

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