बलवान सिंह आज़र के शेर
पूछना चाँद का पता 'आज़र'
जब अकेले में रात मिल जाए
हार जाएगी यक़ीनन तीरगी
गर मुसलसल रौशनी ज़िंदा रही
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हवा के दोश पर लगता है उड़ने
जो पत्ता टूट जाता है शजर से
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ख़त्म होता ही नहीं मेरा सफ़र
कोई थक-हार गया है मुझ में
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कोई मंज़िल कभी नहीं आई
रास्ते में था रास्ते में हूँ
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चलूँगा कब तलक तन्हा सफ़र में
मुझे मिलता नहीं है कारवाँ क्यूँ
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तू भले मेरा ए'तिबार न कर
ज़िंदगी मैं तिरे कहे में हूँ
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पावँ से काँटा निकल जाए अगर
अपनी रफ़्तार बढ़ा लूँ मैं भी
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मार देती है ज़िंदगी ठोकर
ज़ेहन जब उल्टे पाँव चलता है
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ऐसी होने लगी थकन उस को
दिन के ढलते ही सो गया रस्ता
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खुला मकान है हर एक ज़िंदगी 'आज़र'
हवा के साथ दरीचों से ख़्वाब आते हैं
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