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बलवान सिंह आज़र

1986 | दिल्ली, भारत

बलवान सिंह आज़र

ग़ज़ल 13

अशआर 11

हार जाएगी यक़ीनन तीरगी

गर मुसलसल रौशनी ज़िंदा रही

पूछना चाँद का पता 'आज़र'

जब अकेले में रात मिल जाए

ख़त्म होता ही नहीं मेरा सफ़र

कोई थक-हार गया है मुझ में

कोई मंज़िल कभी नहीं आई

रास्ते में था रास्ते में हूँ

चलूँगा कब तलक तन्हा सफ़र में

मुझे मिलता नहीं है कारवाँ क्यूँ

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