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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

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बर्क़ देहलवी

1884 - 1936

दिल्ली की काव्य परम्परा के अंतिम दौर के शायरों में शामिल, अपने ड्रामे ‘कृष्ण अवतार’ के लिए प्रसिद्ध

दिल्ली की काव्य परम्परा के अंतिम दौर के शायरों में शामिल, अपने ड्रामे ‘कृष्ण अवतार’ के लिए प्रसिद्ध

बर्क़ देहलवी

ग़ज़ल 5

 

नज़्म 4

 

अशआर 5

दिन-रात पड़ा रहता हूँ दरवाज़े पे अपने

इस ग़म में कि कोई कभी आता था इधर से

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शब-ए-फ़ुर्क़त नज़र आते नहीं आसार-ए-सहर

इतनी ज़ुल्मत है रुख़-ए-शम्अ' पे भी नूर नहीं

सर-ब-कफ़ हिन्द के जाँ-बाज़-ए-वतन लड़ते हैं

तेग़-ए-नौ ले सफ़-ए-दुश्मन में घुसे पड़ते हैं

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रहेगा किस का हिस्सा बेशतर मेरे मिटाने में

ये बाहम फ़ैसला पहले ज़मीन आसमाँ कर लें

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तेरे दीदार से मैं आँख उठाऊँ क्यूँकर

ज़ुल्फ़ से पा-ए-नज़र हल्क़ा-ए-ज़ंजीर में है

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पुस्तकें 8

 

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