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बर्क़ी आज़मी

1954 - 2022 | दिल्ली, भारत

दिल्ली में रहने वाले शायर, आकाशवाणी की फ़ारसी सेवा से सम्बद्ध रहे

दिल्ली में रहने वाले शायर, आकाशवाणी की फ़ारसी सेवा से सम्बद्ध रहे

बर्क़ी आज़मी

ग़ज़ल 43

नज़्म 1

 

अशआर 9

समझ रहा था जिसे ख़ैर-ख़्वाह मैं अपना

वही है दुश्मन-ए-जाँ मेरा सब से बढ़ कर आज

रूठने और मनाने के एहसास में है इक कैफ़-ओ-सुरूर

मैं ने हमेशा उसे मनाया वो भी मुझे मनाए तो

हुआ कर्बला में जो क़ुर्बान 'बर्क़ी'

हुसैन इब्न-ए-हैदर का वो ख़ानदाँ था

इस हाल में कब तक यूँही घुट घुट के जियूँगा

रूठा है वो ऐसे कि मना भी नहीं सकता

चप्पा चप्पा उस की गली का रहा है मेरे ज़ेर-ए-क़दम

जोश-ए-जुनूँ से अज़्म-ए-सफ़र तक एक कहानी बीच में है

पुस्तकें 4

 

वीडियो 4

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शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

बर्क़ी आज़मी

बर्क़ी आज़मी

आवाज़ का उस की ज़ेर-ओ-बम कुछ याद रहा कुछ भूल गए

बर्क़ी आज़मी

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