बर्क़ी आज़मी के शेर
हुआ कर्बला में जो क़ुर्बान 'बर्क़ी'
हुसैन इब्न-ए-हैदर का वो ख़ानदाँ था
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
रूठने और मनाने के एहसास में है इक कैफ़-ओ-सुरूर
मैं ने हमेशा उसे मनाया वो भी मुझे मनाए तो
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
इस हाल में कब तक यूँही घुट घुट के जियूँगा
रूठा है वो ऐसे कि मना भी नहीं सकता
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
अजब ख़ूँ-चकाँ कर्बला का समाँ था
थे सब तिश्ना-लब और दरिया रवाँ था
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
ज़िंदगी उस ने बदल कर मिरी रख दी ऐसी
न मुझे चैन न आराम है क्या अर्ज़ करूँ
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
अब मैं हूँ और ख़्वाब-ए-परेशाँ है मेरे साथ
कितना पड़ेगा और अभी जागना मुझे
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
समझ रहा था जिसे ख़ैर-ख़्वाह मैं अपना
वही है दुश्मन-ए-जाँ मेरा सब से बढ़ कर आज
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
चप्पा चप्पा उस की गली का रहा है मेरे ज़ेर-ए-क़दम
जोश-ए-जुनूँ से अज़्म-ए-सफ़र तक एक कहानी बीच में है
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
सिसकते थे बच्चे बिलकती थीं माएँ
जो इंसान भी प्यास से ना-तवाँ था
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड