बशीर अहमद बशीर
ग़ज़ल 24
अशआर 1
शाम ढलते ही ये आलम है तो क्या जाने बशीर
हाल अपना सुब्ह तक बे-रब्त नब्ज़ें क्या करें
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere