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अज्ञात
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Bashir Badr at International Mushaira 2002, Houston ज़फ़र इक़बाल
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Bashir Badr reciting at Hind-o-Pak Dosti Aalmi Mushaira 2003, organized by Aligarh Alumni Association Houston, USA. ज़फ़र इक़बाल
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Yeh Chirag Be Nazar Hai भारती विश्वनाथन
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अभी इस तरफ़ न निगाह कर मैं ग़ज़ल की पलकें सँवार लूँ फ़हद
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आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा मसूद तन्हा
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यूँही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो मसूद तन्हा
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हमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाए आर.जे सायमा
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यूँही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो ज़फ़र इक़बाल
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अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जाएगा अज्ञात
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अगर यक़ीं नहीं आता तो आज़माए मुझे फ़हद
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अगर यक़ीं नहीं आता तो आज़माए मुझे हरिहरण
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अगर यक़ीं नहीं आता तो आज़माए मुझे हरिहरण
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अब किसे चाहें किसे ढूँडा करें शकीला ख़ुरासानी
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अभी इस तरफ़ न निगाह कर मैं ग़ज़ल की पलकें सँवार लूँ प्रित डिलन
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आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा Urdu Studio
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कभी यूँ भी आ मिरी आँख में कि मिरी नज़र को ख़बर न हो जगजीत सिंह
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कहाँ आँसुओं की ये सौग़ात होगी अज्ञात
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कहीं चाँद राहों में खो गया कहीं चाँदनी भी भटक गई तलअत अज़ीज़
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कोई फूल धूप की पत्तियों में हरे रिबन से बँधा हुआ आर.जे सायमा
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ख़ुशबू की तरह आया वो तेज़ हवाओं में चंदन दास
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जब रात की तन्हाई दिल बन के धड़कती है हरिहरण
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दुआ करो कि ये पौदा सदा हरा ही लगे चंदन दास
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न जी भर के देखा न कुछ बात की नूर जहाँ
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फूल बरसे कहीं शबनम कहीं गौहर बरसे राज कुमार रिज़वी
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भीगी हुई आँखों का ये मंज़र न मिलेगा तलअत अज़ीज़
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मैं कब तन्हा हुआ था याद होगा चंदन दास
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मुझ से बिछड़ के ख़ुश रहते हो जगजीत सिंह
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मुसाफ़िर के रस्ते बदलते रहे राजेन्द्र मेहता
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मिरे दिल की राख कुरेद मत इसे मुस्कुरा के हवा न दे Urdu Studio
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यूँही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो Urdu Studio
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यूँही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो विविध
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रेत भरी है इन आँखों में आँसू से तुम धो लेना तलअत अज़ीज़
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लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में ज़फ़र इक़बाल
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वो अपने घर चला गया अफ़्सोस मत करो गुलबहार बानो
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वो चाँदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है चंदन दास
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शबनम के आँसू फूल पर ये तो वही क़िस्सा हुआ तलअत अज़ीज़
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सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा जगजीत सिंह
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सर-ए-राह कुछ भी कहा नहीं कभी उस के घर मैं गया नहीं तलअत अज़ीज़
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सोचा नहीं अच्छा बुरा देखा सुना कुछ भी नहीं चित्रा सिंह
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है अजीब शहर की ज़िंदगी न सफ़र रहा न क़याम है आर.जे सायमा
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होंटों पे मोहब्बत के फ़साने नहीं आते मेहरान अमरोही
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होंटों पे मोहब्बत के फ़साने नहीं आते भारती विश्वनाथन