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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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बशीर सैफ़ी

ग़ज़ल 8

अशआर 3

ख़ुद अपनी ही गहराई में

आख़िर को ग़र्क़ाब हुए हम

गूँजूँगा तेरे ज़ेहन के गुम्बद में रात-दिन

जिस को तू भुला सके वो गुफ़्तुगू हूँ मैं

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तेरे नाम का तारा जाने कब दिखाई दे

इक झलक की ख़ातिर हम रात भर टहलते हैं

 

पुस्तकें 1

 

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