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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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बिलाल अहमद

1979

बिलाल अहमद

ग़ज़ल 6

नज़्म 8

अशआर 9

अजीब ढंग से तक़सीम-ए-कार की उस ने

सो जिस को दिल दिया उस को दिलरुबाई दी

उलझ रहा था अभी ख़्वाब की फ़सील से मैं

कि ना-रसाई ने इक शब मुझे रसाई दी

एक काँटे की खटक से दिल मिरा आबाद था

वो गया तो दिल से मेरे दर्द की राहत गई

सुना है मैं ने अज़िय्यत मज़ा भी देती है

सुना है दिल की ख़लिश में सकूँ भी होता है

हमारी ख़ाक तबर्रुक समझ के ले जाओ

हमारी जान मोहब्बत की लौ में जलती थी

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