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बिस्मिल सईदी

1901 - 1976 | टोंक, भारत

क्लासिकी अंदाज़ के प्रमुख शायर / सीमाब अकबराबादी के शागिर्द

क्लासिकी अंदाज़ के प्रमुख शायर / सीमाब अकबराबादी के शागिर्द

बिस्मिल सईदी

ग़ज़ल 45

अशआर 20

ज़माना-साज़ियों से मैं हमेशा दूर रहता हैं

मुझे हर शख़्स के दिल में उतर जाना नहीं आता

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ठोकर किसी पत्थर से अगर खाई है मैं ने

मंज़िल का निशाँ भी उसी पत्थर से मिला है

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सुकूँ नसीब हुआ हो कभी जो तेरे बग़ैर

ख़ुदा करे कि मुझे तू कभी नसीब हो

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सर जिस पे झुक जाए उसे दर नहीं कहते

हर दर पे जो झुक जाए उसे सर नहीं कहते

हुस्न भी कम्बख़्त कब ख़ाली है सोज़-ए-इश्क़ से

शम्अ भी तो रात भर जलती है परवाने के साथ

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पुस्तकें 13

चित्र शायरी 2

 

ऑडियो 8

अब इश्क़ रहा न वो जुनूँ है

इश्क़ जो ना-गहाँ नहीं होता

कब से उलझ रहे हैं दम-ए-वापसीं से हम

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