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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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बुशरा एजाज़

बुशरा एजाज़

ग़ज़ल 4

 

नज़्म 7

अशआर 5

अपने सारे रास्ते अंदर की जानिब मोड़ कर

मंज़िलों का इक निशाँ बाहर बनाना चाहिए

जब राख से उट्ठेगा कभी इश्क़ का शोला

फिर पाएगी ये ख़ाक शिफ़ा और तरह की

मिरे नुक्ता-दाँ तिरा फ़हम अपनी मिसाल है

मैं हूँ एक सादा सवाल कोई जवाब दे

मिरी अपनी और उस की आरज़ू में फ़र्क़ ये था

मुझे बस वो उसे सारा ज़माना चाहिए था

शब भी है वही हम भी वही तुम भी वही हो

है अब के मगर अपनी सज़ा और तरह की

ऑडियो 4

محبت میں کوئی صدمہ اٹھانا چاہئے تھا

मिरी रात मेरा चराग़ मेरी किताब दे

उन्हें ढूँडो

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