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चन्द्रभान ख़याल

1946 | दिल्ली, भारत

नज़्म के जाने माने शायर

नज़्म के जाने माने शायर

चन्द्रभान ख़याल

ग़ज़ल 17

नज़्म 19

अशआर 20

पास से देखा तो जाना किस क़दर मग़्मूम हैं

अन-गिनत चेहरे कि जिन को शादमाँ समझा था मैं

सोचता हूँ तो और बढ़ती है

ज़िंदगी है कि प्यास है कोई

क्या उसी का नाम है रा'नाई-ए-बज़्म-ए-हयात

तंग कमरा सर्द बिस्तर और तन्हा आदमी

नज़र में शोख़ शबीहें लिए हुए है सहर

अभी कोई इधर से धुआँ धुआँ गुज़रे

शहर में जुर्म-ओ-हवादिस इस क़दर हैं आज-कल

अब तो घर में बैठ कर भी लोग घबराने लगे

पुस्तकें 8

 

ऑडियो 5

अगर क़रीब से देखो

आज फिर दर्द उठा

क़तरा क़तरा एहसास

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