दिल शाहजहाँपुरी
ग़ज़ल 12
अशआर 11
आग़ाज़-ए-मोहब्बत से अंजाम-ए-मोहब्बत तक
गुज़रा है जो कुछ हम पर तुम ने भी सुना होगा
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ये भीगी रात ये ठंडा समाँ ये कैफ़-ए-बहार
ये कोई वक़्त है पहलू से उठ के जाने का
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वक़्त-ए-रुख़्सत तसल्लियाँ दे कर
और भी तुम ने बे-क़रार किया
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आरज़ू लुत्फ़ तलब इश्क़ सरासर नाकाम
मुब्तला ज़िंदगी-ए-दिल इन्हीं औहाम में है
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- ग़ज़ल देखिए
हम को बेचैन किए जाते हैं
हाए क्या शय वो लिए जाते हैं
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