डॉक्टर आज़म
ग़ज़ल 19
अशआर 1
यही जम्हूरियत का नक़्स है जो तख्त-ए-शाही पर
कभी मक्कार बैठे हैं कभी ग़द्दार बैठे हैं
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere