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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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डॉ. जाफ़र अस्करी

1972 | कराची, पाकिस्तान

डॉ. जाफ़र अस्करी

ग़ज़ल 10

अशआर 11

नींद आती ही नहीं थी आगही के दर्द से

मौत ने आग़ोश में ले कर सुलाया है मुझे

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छीन लेती है आदमी का वक़ार

मुफ़लिसी भी 'अज़ाब है यारो

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बरसात मुफ़लिसों की सदा से रक़ीब है

कच्चे मकान गिरने का मौसम 'अजीब है

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मुल्ला तिरी अकड़ से ये होने लगा गुमान

जैसे ख़ुदा ज़मीं पे नुमूदार हो गया

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इक माँ के दम से ज़ीस्त में रौनक़ थी बरक़रार

अब वो नहीं तो रौनक़-ए-बज़्म-ए-जहाँ नहीं

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क़ितआ 18

रुबाई 4

 

त्रिवेणी 7

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