Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

यासीनआतिर के शेर

1.3K
Favorite

श्रेणीबद्ध करें

तुम्हें हमेशा ज़रूरत पकड़ के लाती है

कभी तो आओ मिरे घर मिरे हवाले से

रेत बन कर मिरी मुट्ठी से फिसल जाती है

अब मोहब्बत भी सँभाली नहीं जाती मुझ से

ज़िंदगी तू मिरे हौसले की दाद तो दे

मैं उठ के रोज़ नया दिन गले लगाता हूँ

मैं ख़ुद को भी नहीं इतना मयस्सर

वो सौ फ़ीसद तवज्जोह चाहता है

अपने दुश्मन को भी मोहब्बत दे

इश्क़ के दाएरे को वुसअ'त दे

तिरी गिरफ़्त मिरा मर्तबा बढ़ाती है

मुझे तू अपनी मोहब्बत में मुब्तला रखना

मैं आंधियों से लड़ा था इस ए'तिमाद के साथ

दरख़्त टूट भी जाए तो काम आता है

मैं अपनी ज़ात में ख़ुद से झगड़ता रहता हूँ

वो चाहता है रहूँ उस की हुक्मरानी में

जाँच लेती हैं मोहब्बत की निगाहें पल में

नाप ले कर तो स्वेटर नहीं बुनते जानाँ

आप सीने में छुपाते हैं मोहब्बत अपनी

हम को दीवार के पीछे भी नज़र आता है

जाने कौन सी ग़ुर्बत है मेरी आँखों में

कि उस बदन में ख़ज़ाने तलाश करता हूँ

ख़्वाब सच्चा हो तो मुबहम नहीं रहता 'आतिर'

दिल वो यूसुफ़ है कि ता'बीर बता देता है

तुम से अब मेरा त'अल्लुक़ सिर्फ़ इतना है कि बस

रोज़ मौसम देख लेता हूँ तुम्हारे शहर का

एक हल्की सी भी आहट हो तो डर जाता है

शेर की खाल को दहलीज़ पे रखने वाला

एक दो घोंट में कर डालेगा ख़ाली तुम को

तुम जो दरिया हो तो सहरा से टक्कर लेना

मस्त हसीन लोगों में ढूँडिए वफ़ादारी

ख़ुशनुमा दरख़्तों पर फल नहीं लगा करते

दिल के अंदर यूँ छुपा रक्खा है इक तेरा ख़याल

जैसे इक बीज में पोशीदा शजर रहता है

अपने चेहरे की रौशनी लाना

इक दिया ढूँड लूँ अंधेरे में

अब गया हूँ तो दिल में उतार लेना मुझे

बुला के पास मुझे राएगाँ कर देना

मैं चाहता था मिरा इश्क़ ला-ज़वाल रहे

सो मग़्फ़िरत की दुआ माँगता रहा कल रात

तमाम शहर ही जोगी समझ रहा है मुझे

तुम्हारे ध्यान की माला गले में क्या पहनी

मैं तो गुमनाम था कम-क़द्र था और ख़ाक-बसर

इक तिरे इश्क़ ने तौक़ीर बढ़ा दी मेरी

फिर ये ग़ुर्बत नहीं करती है तआ'क़ुब उस का

जब कोई शख़्स मोहब्बत को कमाने निकले

अब उस को लोग सितारा-शनास कहते हैं

दुकाँ ख़रीद ली तोते की फ़ाल वाले ने

सफ़र में कैसे मोहब्बत से साथ रहते हैं

सबक़ ये मैं ने परिंदों की डार से सीखा

बदन की खाल को कपड़ों से ढाँप कर रखिए

हमें तो क़ीमती पोशाक को बचाना है

दफ़्तर-ए-हुस्न सजा रक्खा है उस ने 'आतिर'

वो ग़ज़ल को मिरी अर्ज़ी की तरह पढ़ता है

फिर से दो चार समुंदर के थपेड़ों ने मुझे

ये बताया कि मिरी माँ थी जज़ीरा जैसी

Recitation

बोलिए