ये उड़ी उड़ी सी रंगत ये खुले खुले से गेसू
तिरी सुब्ह कह रही है तिरी रात का फ़साना
एहसानुल-हक़ (1914-1982)ज़िन्दगी का हौसला और जोश बढ़ाने वाली शाइरी के लिए मशहूर। कान्धला, मुज़फ़्फ़र नगर (उत्तर प्रदेश) में जन्म। ग़रीबी ने चौथी क्लास से आगे न पढ़ने दिया। घर चलाने के लिए मज़्दूरी करने लगे। 15 साल की उम् में लाहौर जा बसे और वहाँ भी मज़्दूरी, चौकीदारी और बाग़बानी जैसे काम किए। फिर एक बुक डिपो में नौकरी मिल गई। इन सब कामों के बीच पढ़ाई भी की और शाइरी भी। ‘ताजवर’ नजीबाबादी के शागिर्द थे।