एहतराम इस्लाम
ग़ज़ल 8
अशआर 8
याद था 'सुक़रात' का क़िस्सा सभी को 'एहतिराम'
सोचिए ऐसे में बढ़ कर सच को सच कहता तो कौन
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लड़खड़ा कर गिर पड़ी ऊँची इमारत दफ़अतन
दफ़अतन तामीर की कुर्सी पे खंडर जम गया
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साथ रखिए काम आएगा बहुत नाम-ए-ख़ुदा
ख़ौफ़ गर जागा तो फिर किस को सदा दी जाएगी
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शेर के रूप में देते रहना
'एहतिराम' अपनी ख़बर आगे भी
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वीडियो 12
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