aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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एजाज़ अंसारी

1955 | दिल्ली, भारत

एजाज़ अंसारी

ग़ज़ल 18

अशआर 3

ज़िंदगी दी हिसाब से उस ने

और ग़म बे-हिसाब लिक्खा है

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तमाम शहर से मैं जंग जीत सकता हूँ

मगर मैं तुम से बिछड़ते ही हार जाऊँगा

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सर उठाते हैं यहाँ भी अस्र-ए-हाज़िर के यज़ीद

कल ये ख़ित्ता भी महाज़-ए-कर्बला हो जाएगा

 

पुस्तकें 2

 

चित्र शायरी 1

 

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