एजाज़ सिद्दीक़ी
ग़ज़ल 8
नज़्म 1
अशआर 3
आज भी बुरी क्या है कल भी ये बुरी क्या थी
इस का नाम दुनिया है ये बदलती रहती है
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और ज़िक्र क्या कीजे अपने दिल की हालत का
कुछ बिगड़ती रहती है कुछ सँभलती रहती है
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दुनिया सबब-ए-शोरिश-ए-ग़म पूछ रही है
इक मोहर-ए-ख़मोशी है कि होंटों पे लगी है
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