90 के अशरे में उभरने वाले शायरों में एक अहम नाम। साईंस (जियालोजी( में पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद बैंकिंग सर्विस और मुल्क के अहम मालियाती इदारे से मुंसलिक रहे। मुल्क के तमाम अहम अदबी रसाइल में नज़्में शाए’ हुईं। अंग्रेज़ी और उर्दू में मुतफ़र्रिक़ मज़ामीन शाए’ हो चुके हैं। दो मजमूआ-ए-कलाम 'मसनद-ए-ख़ाक सन 2001 और 'लहू से चाँद उठता है सन 2020 में शाए’ हुए।
इकराम ख़ावर की शायरी अपने अह्द और मुआ’शरे की हक़ीक़तों के इदराक, शायरी से संजीदा और निसबतन ग़ैर रिवायती सरोकार, मुरव्वजा अदबी इक़दार की हत्तल-इमकान पासदारी के साथ साथ हत्तल-वसी’ इन्हिराफ़, मुआशरती ना-इंसाफ़ीयों और बद-उनवानियों के ख़िलाफ़ एहतिजाज और वजूद-ए-इन्सानी की ना-गुफ़्ता ब-सूरत-ए-हाल से शदीद बे-इत्मिनानी व दिल-गिरफ़्तगी के फ़नकाराना इज़हार की संजीदा कोशिश से इबारत है।